अल्लाह ताला ने दुनियां को क्यों पैदा किया?

 


अपना फ़ज़ल व अदल कुदरत व कमाल ज़ाहिर करने के लिए मख़्लूख को पैदा किया।

अकीदा, अल्लाह ताला के हर काम में बहुत हिकमतें हैं, हमारी समझ में आय या न आए उसकी हिक्मत है कि दुनियां में एक चीज़ को दूसरी चीज़ का सबब ठहराया। आग को गर्मी पहुंचाने का सबब , पानी को सर्दी पहुंचाने का सबब बनाया,आंख को देखने के लिए कान को सुनने के लिये बनाया अगर वह चाहे तो आग सर्दी, 

पानी गर्मी दे और आंख सुने कान देखें।

खुदा की हर ऐब से पाकी,

अकीदा, खुदा के लिएं हर ऐब और नक्स मुहाल है जैसे झूठ, जहल, भूल, जुल्म बेहयाई वगैरह तमाम बुराइयां ख़ुदा के लिएं मुहाल हैं और जो यह माने कि ख़ुदा झूठ बोल सकता है लेकिन बोलता नहीं तो गोया वह यह मानता है कि ख़ुदा एबी तो है लेकिन अपना ऐब छुपाए रहता है फ़िर एक झूठ पर ही क्या खत्म सब बुराईयों का यही हाल हो जाएगा कि उसमें है तो लेकिन करता नहीं जैसे जुल्म, चोरी, फना, तवालूद व तनासुल, वगैरह उयूबe  kaseera । खुद के लिये किसी नक्स व ऐब को मुमकिन जानना ख़ुदा को एबी मानना है बल्की ख़ुदा ही का इंकार करना है।

अल्लाह ताला ऐसे गंदे अकीदे से हर आदमी को बचाए रखे। 

अकीदा, अल्लाह ताला के इल्म में जो कुछ आलम में होने वाला था और जो कुछ बंदे करने वाले थे उसको अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने पहले ही से जानकर लिख लिया। किसी की किस्मत में भलाई लिखी और किसी की किस्मत में बुराई लिखी इस लिख देने ने बंदे को मजबूर नहीं कर दिया कि जो अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने लिख दिया वह बंदे को मजबूरन करना पड़ता है बल्कि बंदा जैसा करने वाला था वैसा ही उसने लिख दिया। 

किसी आदमी की किस्मत में बुराई लिखी तो इसीलिए की यह आदमी बुराई करने वाला था अगर यह भलाई करने वाला होता तो उसकी किस्मत में भलाई ही लिखता। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के ईल्म ने या अल्लाह ताला के लिख देने ने किसी को मजबूर नहीं कर दिया।

मसला, तकदीर के मसले में गौर व बहस मना है। बस इतना समझ लेना चाहिए कि आदमी पत्थर की तरह मजबूर नहीं है कि उसका इरादा कुछ हो ही नहीं बल्कि अल्लाह ताला ने आदमी को एक तरह का इख्तियार दिया है कि एक काम चाहे करे चाहे ना करे इसी इख्तियार की बिना पर नेकी व बदी की निस्बत बंदे की तरह है अपने आपको बिल्कुल मजबूर या बिल्कुल मुख्तार समझना दोनों हमराही हैं। 

मसला, बुरा काम करके यह न कहना चाहिए बे अदबी है कि ख़ुदा ने चाहा तो हुआ तकदीर में था किया बल्कि हुक्म यह है कि अच्छे काम को कहे कि ख़ुदा की तरफ़ से और बुरे काम को अपने नफ़्स की शरारत शामत जाने। 

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